गुरुवार, 3 अगस्त 2017

वो क्यों बना एकलव्य





दीपक मिश्रा केमिस्ट्री के प्रोफ़ेसर थे |शुरू से ही पढ़ाई में अच्छे थे | बनना तो वो वैज्ञानिक   चाहते थे ,जो कुछ नयी खोज कर कर सके |  पर रोजी रोटी के जुगाड़ ने उन्हें G D विश्व -विद्यालय पहुंचा दिया |  आपकी जानकारी के लिए बता दूं की GD का फुल फॉर्म है गुरु द्रोणाचार्य विश्व विद्यालय | विश्व विद्यालय के मुख्य द्वार पर गुरु द्रोणाचार्य व् अंगूठा काट कर देते हुए एकलव्य की बड़ी सी प्रतिमा बनी हुई है | हालांकि ये प्रतिमा पूरे साल धूप गर्मी बरसात सहती हुई पत्थर बन कर खड़ी  रहती है | किसी का उस पर ध्यान ही नहीं जाता | जाए भी क्यों न तो अब गुरु द्रोणाचार्य जैसे गुरु रहे हैं न अर्जुन , एकलव्य जैसे शिष्य |अलबत्ता  गुरु पूर्णिमा के दिन उसके दिन बहुरते , जब विश्व - विद्यालय की ओर से उस पर माल्यार्पण किया जाता है | रोली - अक्षत लगाया जाता |  और कुछ बच्चे जो उस समय वहां उपस्तिथ होते उन्हें प्रसाद भी  बांटा जाता |

" ब्लू व्हेल " का अंतिम टास्क




पापा मेरे मैथ्स के सवाल हल करने में मुझे आपकी मदद चाहिए |
नहीं बेटा आज तो मैं बहुत बिजी हूँ , ऐसा करो संडे  को  तुम्हारे साथ बैठूँगा |
पापा , न जाने ये संडे कब आएगा | पिछले एक साल से तो आया नहीं |
बहुत फ़ालतू बाते करने लगा है | अभी इतना बड़ा नहीं हुआ है की पिता से जुबान लड़ाए | देखते नहीं दिन - रात तुम्हारे लिए ही कमाता रहता हूँ | वर्ना मुझे क्या जरूरत है नौकरी करने की |

मम्मा रोज चीज ब्रेड ले स्कूल लंच में ले जाते हुए ऊब होने लगी है ,दोस्त भी हँसी उड़ाते हैं |  क्या आप मेरे लिए आज कुछ अच्छा बना देंगीं |
नहीं बेटा , तुम्हें पता है न सुबह सात बजे तक तुम्हारा लंच तैयार करना पड़ता हैं | फिर मुझे तैयार हो कर ऑफिस जाना होता है | शाम को लौटते समय घर का सामान लाना , फिर खाना बनाना | कितने काम हैं मेरी जान पर अकेली क्या क्या करु | आखिर ये नौकरी तुम्हारे लिए ही तो कर रही हूँ | ताकि तुम्हें बेहतर भविष्य दे सकूँ | कम से कम तुम सुबह के नाश्ते में तो एडजस्ट कर सकते हो |
                                                                                                               सुपर बिजी रागिनी और विक्रम का अपने १२ वर्षीय पुत्र देवांश से ये वार्तालाप सामान्य लग सकता है | पर इस सामान्य से वार्तालाप से देवांश के मन में उपजे एकाकीपन को  उसके माता - पिता नहीं समझ पा रहे थे | तो किसी और से क्या उम्मीद की जा सकती है |