मंगलवार, 10 जनवरी 2017

रिया स्पीक्स----- घूँघट



रिया कमरे में  पेंसिल मुँह में लगाए  मैथ्स की प्रोब्लम्स सोल्व कर रही है |(खुद से बडबडाते हुए ) ओह नो ! फिर गलत हो गया |ये प्रोबेबिलिटी के सम्स भी बड़े कन्फयूसिंग होते हैं ,समझ ही नहीं आता कौन सा आंसर सही है |ये भी सही लगता है वो भी | अक्ल पर पर्दा पड़ गया है| निशा से पूछती हूँ | रिया मोबाईल उठाने ही जा रही थी तभी कमरे में दादी का प्रवेश होता है |
दादी :हे !शिव ,शिव ,शिव ,का ज़माना आ गया है |कल कि बहुरिया और आज ई .........
रिया ; (हँसते हुए ) अब ज़माने से कौन सी गलती हो गयी दादी, जो उसे कोस रही हो |
दादी :का बतावे बिटिया ,अभी बालकनी से हम देखी रही .... सामने वाले घर में जो अभी दुई दिन पहिले नयी बहुरिया आई है ऊ .......(अँगुली से खिड़की के बाहर ईशारा करते हुए ) ऊ देखो मूढ़ ऊघारे ससुर से बतियाय रही है |तनिकौ लाज –शर्म है कि नाही |
रिया :अरे दादी ! ससुर भी तो पिता  ही होते हैं इसमें गलत क्या है ?
दादी :पर बिटिया तनिक सर तो ढके के चाहि ,अब बहु बिटिया में कुछ तो फर्क दिखे  के चाहि |
रिया :ओह ! आपका मतलब घूंघट दादी ?अरे दादी ,यह तो मैं भी पसंद नहीं करती कि औरतें घूँघट करे

दादी :लाज –शर्म भी तो कोन्हू चीज है कि नाही ?बहुरियाँ  सर ढके में कितनी नीक लागत है |
इहे हमार सभ्यता –संस्कृति है |
रिया :दादी ,हमारी वैदिक संस्कृति में तो घूंघट था नहीं |बीच में ..... मध्य युगीन समाज में जब लड़कियों को  पुरुषों से बचाने के नाम पर घरों में कैद किया गया ,शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा ,वस्तु माना  गया तब घूँघट आया ..... खैर छोडिये |पर आज ... आज जब महिलाएं घर के बाहर जा कर जॉब कर रहीं है ,तो सर खोल कर ही बाहर जाती हैं |फिर घर में घूँघट क्यों ?त्रिशंकु वाली हालत हो गयी है बहुओ  की ,बाहर सर खोल कर घूमों और घर में अपनों से पर्दा करो |यह दोहरी जिंदगी क्यों ?
दादी :तुमहू ऐसी बात करत हो बिटिया , का घर के बड़े बुजर्गन को सम्मान देने कि कोन्हू जरूरत नाही है |ई तो सभ्यता है |
रिया :सम्मान केवल घूँघट में है क्या  दादी |क्या घूँघट के अन्दर से कडवी बातें नहीं कि जा सकती या मुँह नहीं बनाया जा सकता है |पर्दा तो आँख का होता है |सम्मान तो मन में होना चाहिए |इसके चलते लड़कियों को को कितनी असुविधा फील होती है |हर समय यही लगता है कि वो पराये घर में हैं |जरा सोचो तो दादी ..........
दादी : (बीच में बात काटते हुए ) अरे तो ससुराल के नियम तो पाले ही चाही |पराये घर का अहसासों जरूरी है |ध्यान रहे की बिटिया नाही है अब वो बहुरिया है ई घर की |
रिया :तभी तो .... तभी तो दादी बहु बिटिया  नहीं बन पाती | और यही कहा जाता  है बेटियाँ अपने माँ –बाप से ज्यादा प्यार करती हैं ,बहुए नहीं | बहु बना कर रखा तो बुढापे  में ,या जरूरत के समय वो बेटी कहाँ बन पाएगी ,बहु ही रहेगी | एक दीवार रहेगी घूंघट की .....तन पर और मन पर |
दादी :बिटिया का कहत हो ?ऐसा तो हम कभी सोंचे ही नाही |
रिया : आप ही बताइये दादी ,घूँघट में आप को भी दिक्कत हुई होगी | (दादी का हाथ पकड़ कर हिलाते हुए )बताइये न दादी ?
दादी : हाँ बिटिया ,शुरू –शरू में तो धोती सर पर टिकत  ही नाहीं थी |अब घूँघट संभाले की हाथ कि लोई संभाले |एक बार सास रिसाय गयी ,कड़क कर बोली “कील गाड़ दो ई का सर मा ,पल्लू टिकत ही नाही है “हम तो डिराय गयी | बहुते ध्यान राखे लगी | ( लम्बी सांस लेते हुए )...कई बार गिरी पड़ी चोटों लगी | पर धीरे –धीरे कर के आदत पड  गयी |
रिया : यानी दादी मेमने कि सर्कस में रहने कि ट्रेनिंग पूरी हो गयी |
दादी :बात तो तुम सही कहत हो बिटिया

(और दोनों हंस पड़ती हैं ) 
वंदना बाजपेयी 

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