रविवार, 13 दिसंबर 2015

लघु कथा -हमदर्द

पंडित दीनानाथजी वृद्ध हैं । कानो से सुनाई नहीं देता है ,बी .पी .है ,शुगर है पर सबसे ज्यादा परेशान उन्हें गठिया ने कर रक्खा है .

ठीक से चला भी नहीं जाता है। घर में बहू है बच्चे  हैं।
श्रीमतीजी का स्वर्गवास हुए एक साल हो गया है।

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

चलो चले जड़ों की ओर


जंगल में रहने वाले  मानव ने जिस दौर में आग जलाना सीखा , पत्थरों  को नुकीला कर हथियार बनाना  सीखा , तभी  शायद उसने परिवार के महत्व को समझा और यह भी समझा कि मनुष्य सामाजिक प्राणी है जिसे सहज जीवन जीने  के लिए समाज , परिवार अपनों के स्नेह की छाया जरूरत है | कदाचित यही से  परिवार संस्था का जन्म हुआ | तब परिवार  का अर्थ संयुक्त परवार ही हुआ करता था | मातृ देवो भव , पितृ देवो भव् में विश्वास रखने वाले भारतीय जन -मानस ने इस व्यवस्था को लम्बे समय तक जीवित रखा । संयुक्त परिवार में स्नेह और सुरक्षा का मजबूत ताना बाना होता है । यहाँ दादी और नानी की कहानियां होती हैं ,जो हौले से बच्चों में संस्कार के बीज रोप देती है , चाचा बुआ के रूप में बड़े मित्र और साथ खेलने के लिए भाई -बहनों की लम्बी सूची । धीरे -धीरे औध्योगिक करण  के साथ रोटी की तालाश में कुछ को माता -पिता से दूर दूसरे  शहरों /देशों में जाने को विवश कर दिया वही स्वंत्रता की चाह में कुछ उसी शहर में रहते हुए माता पिता से दूर एकल परिवार में रहने लगे । यही वो समय था जब समाज नए तरीके से पुर्नगठित होने लगा ।

सोमवार, 28 सितंबर 2015

रिया स्पीक्स: "सीखने की उम्र "




दादी :( बालकनी में प्रवेश करते हुए) हे ! शिव शिव शिव (खुद से बड़बड़ाते हुए ),हा सूर्य देव ,बड़ी किरपा कीं हो ,बड़ी नीक घाम निकली है।

शनिवार, 26 सितंबर 2015

दर्द



सुमि अकेले ही रहती है । पति को तीन साल के लिए दुबई में नौकरी मिल गयी है । सुमि की नौकरी यहाँ है ... अतः वह  पति के साथ जा नहीं सकी । बच्चे हॉस्टल में पढ़ते हैं ।

अकेलापन जैसे काटने को दौड़ता । मन उदासी का शिकार हो  गया था । शोर बिलकुल अच्छा नहीं लगता था । ऊपर से सामने बनने  वाले मकान का शोर...........  तौबा - तौबा । मकान का शोर तो वह बर्दाश्त भी कर लेती पर  सबसे ज्यादा उसे खटकती थी एक मजदूर स्त्री की आवाज । उसकी बहुत जोर कनकनाती  सी आवाज थी ।

शायद उसका नाम सुभागी था ... अकेली वही बनते हुए मकान में रहती थी । काला  रंग, बेतरतीब बाल,

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

व्यर्थ में न बनाये साहित्य को अखाड़ा


                          
  ये विवाद सदा से चलता रहेगा कि कौन सा साहित्य बेहतर है " गहन या लोकप्रिय"………  अपनी विद्वता सिद्ध करने के लिए या अपनी हताशा छिपाने के लिए साहित्यकारों में यह एक मुद्दा बना ही रहता है। पर मैं इस विवाद को सिरे से नकारती हूँ ………  दरसल साहित्य के रचियताओ ने साहित्य कि परिभाषा ही बिगाड़ दी है।  साहित्य कि एक मात्र सार्थक परिभाषा तुलसीदास जी ने दी थी जब वो कहते हैं " कीरति भनिति भूति भलि सोई । सुरसरि सम सब कहँ हित होई।। "
                                                    मेरे विचार से    साहित्य जनता तक अपनी बातो को,विचारों को  पहुचाने का माध्यम है अगर वो  महज पांडित्य प्रदर्शन का माध्यम बन कर रह गया तो  केवल लाइब्रेरियों में सज कर रह जाएगा,आम जनता न उसे समझ पाएगी न स्वीकार कर पाएगी।  फिर भी अगर  साहित्यकारों का यही उदेश्य है तो कुंठा क्यों ?वस्तुत : मैं प्रभात रंजन जी कि इस बात से सहमत हूँ कि आज का साहित्य आलोचकों को संतुष्ट करने के लिए लिखा जा रहा है. जो उसे क्लिष्ट और दुरूह बना रहा है ,साथ ही आम जनता कि पहुँच से बहुत दूर भी।  

रविवार, 22 मार्च 2015

यूरेका " की मौत




बूढ़ा आर्किमिडिज़ ...जो अब 80 साल का हो गया है। .... सफ़ेद लम्बी दाढ़ी , झुर्रीदार चेहरा , ठीक से चला नहीं जाता ,पर मन में अभी भी विज्ञानं के लिए , मानव समाज के लिए बहुत कुछ करने की अभिलाषा शेष है अपनी पिछली जिंदगी के बारे में सोंचता जा रहा है । (फर्श पर ज्यामिति की तमाम रचनाएँ चाक से बना रहा है )
उसे अभी भी वो दिन अच्छी तरह से याद है कि किस तरह सैराक्वूज के राजा हायरोन ने उसे एक स्वर्ण मुकुट हकीकत पता लगाने को दिया था .......नकली और असली में भेद कर पाना कितना कठिन था.…। और कैसे उसने नहाते समय इस नियम को खोज लिया था कि कोई वस्तु पानी में डुबोने पर अपने भार के बराबर पानी हटा देती है ।ख़ुशी में वो उसी अवस्था में यूरेका -यूरेका (मैंने पा लिया ,मैंने पा लिया) कहते हुए राजमहल की और दौड़ा था। इसी आधार पर उसने स्वर्ण मुकुट की सच्चाई पता लगाई थी .
फिर .................. फिर उसे कितना सम्मान मिला था ।कितना हौसला बढ़ा था। …
फिर कैसे उसकी यात्रा चल पड़ी विज्ञानं के अन्य अन्वेषणों की ओर ।

रिया स्पीक्स




बहुत दिनों से मैं उसे खोज रही थी। अचानक ही मिल गयी , वो भी मेरे घर के पास।तो आइये आज आप का भी परिचय करा ही देते है उससे .... मैं बात कर रही हूँ रिया की , 21 वर्षीय दिल्ली में पैदा हुई और दिल्ली में पली लड़की। इस वक़्त दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ रही है। रिया एक परंपरावादी परिवार से है ,विचारों से आधुनिक है। रिया में परंपरा व् आधुनिकता का अनुपातिक समावेश है। रिया जींस,स्कर्ट सलवार -कुरता जो मन आये पहनती है। मंदिर भी जाती है ,डिस्को में भी। लिंकन पार्क ,माइकल जैक्सन तेज वॉल्यूम में सुनती है तो धीमी -धीमी वॉल्यूम में शास्त्रीय संगीत भी। धार्मिक ,सामाजिक ,राजनीतिक हर मुददे पर रिया खुल कर बोलती है। वही दूसरी ऒर रिया की दादी फूल रानी जो उत्तर प्रदेश के एक गाँव उतरी -पूरा से यहाँ रहने आयी है। दादी घोर परंपरा वादी है, पर कही न कही समझाने पर समझती हैं,

रिया स्पीक्स ... विश्वास








रिया घर के छोटे से मंदिर में बैठ कर मानस पाठ कर रही है।
"मन क्रम वचन चरण अनुरागी
अवगुण कवन नाथ हौं त्यागी "
तभी दादी उस कमरे में कुछ बड़बड़ाते हुए प्रवेश करती हैं :हे !शिव शिव शिव..... का जमाना आ गा है।
रिया :मानस बंद करते हुए क्या हुआ दादी ,इतना अपसेट क्योँ हैं ?
दादी :अब का बताई बिटिया …अभी उ इलाहबाद से हमऱी बहनी का फोन आया रहा। बड़ी दुखी राहे। फोनई पे रोन लागी। अरे उ का पोता सुभाष ……अब लरिका -बहू के बीच लड़ाई झगरा तो हुए करीं ,पर बात इतनी बढ़ जाई इ तौ कोन्हू नही चाहत।
रिया :(आश्चर्य से ) सुभाष भैया और सुधा भाभी के बीच ऐसा क्या हो गया दादी ?भाभी तो वर्किंग है , अच्छा -भला कमाती हैं। घर के काम में भी एक्सपर्ट। फिर ऐसे कैसे इतनी बात बढ़ गयी?

रिया स्पीक्स : दीपावली की सफाई





दादी :(कमरे में प्रवेश करते हुए )हे !शिव ,शिव ,शिव ……ई मौसम बदलत है तो परिया बड़ी पिरान लागत है का करे हम बुजुर्गन का तो झेलना ही पडत है.रिया ! अरी ओ बिटिया ,ई छिपकली की तरह दीवाल पे काहे लटकत हो, उतरो नीचे ,हड्डी -पसली टुटाय गयी तो ?हमार लरिका की तो चप्पल ही घिसाय जाई तुमहार लिए वर खोजत -खोजत।
रिया : (हँसते हुए )अरे दादी ,आपअभी से मेरी मेरी शादी की चिंता न करो रोशनदान साफ़ कर रही हूँ। दीपावली है ना , सफाई तो करनी होगी।
दादी :हां ! बिटिया ,लक्ष्मी माता को घर बुलाई की खातिर सफाई तो सबै करत हैं,अपने अपने घरन माँ , जहां लक्ष्मी पूजा भई नहीं उ के बाद देखो सरकन का हाल। का इही की खातिर सफाई करत हैं। ऊ लम्बी -लम्बी पटक्का ....का कहत हैं ऊ का ……… चटाई ,ऊ बिछा देत हैं सरक पर ,और देखो भाड़ ,भाड़ ,भाड़ एकई क्षण मा सड़क गन्दी कर देत हैं ,कानऊ फटाय जात हैं.और तो और प्राणाऊ संकट मा आ जात हैं जब ई पटाखा की वजह से साँसहू लें भारी पडत है

बच्चों का कानून


                                              


सरला जी ने दरवाजा खोला ... ये क्या .... उनका ४ वर्षीय बेटा चिंटू आँखों में आंसू लिए खड़ा है ।
क्या हुआ बेटा ... सरला जी ने अधीरता से पूंछा ।
मम्मी आज मैं ड्राइंग की कॉपी नहीं ले गया था, इसलिए मैम ने चांटा मार दिया । सरला जी का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया । गुस्से में बोलीं ... ये कैसी अध्यापिका है , औरत होकर भी ममता नहीं है |छोटे बच्चों को कहीं मारा जाता है ? क्या उसे बच्चों के कानून के बारे में पता नहीं है चलो मेरे साथ मैं आज ही उस को कानून बताउंगी ।
तमतमाती हुई सरला जी चिंटू को साथ ले स्कूल पहुंची ।