बुधवार, 3 दिसंबर 2014

अथ श्री घूँघट कथा


                                               
यादो के पन्ने पलटती हूँ। जब मेरी नयी -नयी शादी हुई थी। किसी पारिवारिक समारोह में हम सब नयी बहुए भारी -भारी साडी और जेवर पहने माथे के नीचे तक घूँघट किये लगभग एक जैसे ही दिख़ती थी। ऐसे में जब परिवार के पुरूष सदस्य हमारी महिला -मंडली में प्रवेश करते थे तो पहचान न पाने के कारनं वो अपनों से छोटो के भी पैर छू जाते थे। हमें दिख रहा होता था ,पर मुँह से मना करे ,या हाथ पकड़ कर रोक दे……… न बाबा ना .........इतनी संस्कार हीनता कि हमें इजाजत नहीं थी। फिर क्या आओ ,पैर छुओ और बिना आशीर्वाद प्राप्त किये जाओ
। उसके बाद हम लोग हँसते थे कि किस-किस जेठ ने किस-किस बहु के पैर छु लिए।
समस्या तब आयी जब हमारी इस मासूम सी हंसी पर परिवार कि एक बुजुर्ग महिला की नजर पड़ गयी। आनन् -फानन में परिवार के धड़ाधड़ पैर छुआउ आशीर्वाद प्राप्त करने कि इक्षुक पुत्रो के हित में फरमान जारी हुआ कि इन नयी बहुओ के साथ परिवार की एक बुजुर्ग महिला जरूर रहेगी जो पुत्रो को उनके सम्मान की रक्षा हेतु सावधान करती रहेगी
लला ,इ का नहीं इ चुटकवा की है। उ का नहीं उ बबलू की है। ……। और उ का तो बिलकुल ही नाही उ तुम्हार दुल्हन है……… .

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